सभी सब्जियों में आलू का अपना महत्वपूर्ण स्थान है।आलू एक ऐसी सब्जी जिसे आप पूरे साल उपयोग में लाते हो। आलू की मांग पूरे साल रहती जिससे इस फसल से किसानों को भी बहुत फायदा होता है।
आलू एक अर्द्धसडनशील सब्जी वाली फसल है। इसकी खेती रबी मौसम या शरदऋतु में की जाती है। इसकी उपज क्षमता समय के अनुसार सभी फसलों से ज्यादा है इसलिए इसको अकाल नाशक फसल भी कहते हैं। इसका प्रत्येक कंद पोषक तत्वों का भण्डार है, जो बच्चों से लेकर बूढों तक के शरीर का पोषण करता है।
माना जाता है की आलू की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका से हुई है आलू भारत की महत्वपूर्ण फसल है जो तमिलनाडू और केरल के अलावा देश के सभी प्रांतों में उगाया जाता है भारत में आलू की औसत उपज 152 कुं/हेक्ट है जो विश्व की औसत से काफी कम है। भारत में चावल, गेहूं, गन्ना की खेती के बाद क्षेत्रफल में आलू का चौथा स्थान है।
आलू में मुख्य रूप से 80-82 प्रतिशत पानी होता है और 2 प्रतिशत चीनी, 14 प्रतिशत स्टार्च,2 प्रतिशत प्रोटीन,वसा 0.1 प्रतिशत,1 प्रतिशत खनिज लवण तथा थोड़ी मात्रा में विटामिन्स भी होते हैं।
अगर आलू की बुवाई की बात करें तो आलू की अगेती खेती सितम्बर के अंत से अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक कर सकते हैं। और मुख्य फसल की बुवाई अक्टूबर के बाद होनी चाहिए।
आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व भूमि
आलू की अच्छी उपज के लिए दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात्रि का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए आलू के कन्द बनाते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापकम सर्वोत्तम माना जाता है।
आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है लेकिन इसके लिए अच्छे जल निकास वालीभूमि होनी चाहिए आलू के लिए क्षारीय तथा जल भराव अथवा खडे पानी वाली भूमि कभी ना चुने तथा जीवांश युक्त रेतीली दोमट या सिल्टी दोमट भूमि जिसका PH मान 6-8 के मध्य हो ज्यादा अच्छी होती है।
आलू के बुवाई का समय और खेत की तैयारी
हम जानते हैं की पाला पड़ना आलू की फसल के लिए ठीक नहीं होता है लेकिन उत्तर भारत में पाला पड़ना आम बात है जिससे आलू को बढ़ने के लिए पूरा समय नही मिल पता है आलू की अगेती खेती में समय अधिक मिलता पर अच्छा उत्पादन नहीं हो पता है
आलू की अगेती खेती करने का सही समय सितम्बर के अंत और अक्टूबर का पहला सप्ताह होता है
आलू की खेती के लिए अगेती धान,मक्का की खेती से खाली खेत की सबसे पहले ट्रैक्टर चालित मिट्टी पलटने वाले हल से अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए उसके बाद पाटा लगा कर 3-4 बार जुताई करनी आवश्यक हैं जिससे खेत की मिट्टी नरम हो जाए।
खेत की जुताई से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद 15-30 तन प्रतिहेक्टेयर मिलनी चाहिए अच्छी फसल के लिए 150-180kg नाइट्रोजन ,60kg फास्फोरस और 100kg पोटास खेत में मिलना चाहिए।
आलू की अच्छी किस्में
फसल के अच्छे उत्पादन के लिए अच्छी किस्म की आवश्यकता होती है जिससे किसानों को अधिक उत्पादन मिल सके।
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने अपनी वेबसाइट पर आलू की लगभग सभी किस्मों के बारे में बताया है.उन्ही मे से कुछ क़िस्मों में से मैं आप सभी को बताने वाला हों जिससे आप सभी कम लागत में अच्छा उत्पादन क,आर सकें।
कुफरी गंगा प्रति हेक्टेयर 350-400 क्विंटल.
कुफरी ललित प्रति हेक्टेयर 300-350 क्विंटल
कुफरी चिप्सोना-4 प्रति हेक्टेयर 300-350 क्विंटल
कुफरी थार- 3 प्रति हेक्टेयर 450 क्विंटल
कुफरी लीमाप्रति हेक्टेयर 300-350 क्विंटल.
आलू की फसल के लिए बीज का चयन व मात्रा
आलू के बीज का चयन करते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान--
1-बीज हमेशा विश्वसनीय जैसे-सरकारी बीज भरण्डर,राष्ट्रीय बीज निगम, कृषि विश्वविद्यालय,राज्य के कृषि और उद्यान विभाग या क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से ही खरीदें।
2-आप खुद के उत्पादित बीज या प्रगतिशील किसान किसान से खरीदा हुआ बीज का प्रयोग करते हैं
3-प्रत्येक 3 से 4 साल बाद बीज को जरूर बदल दें।
4-बीज के किस्मों का चयन आप बाजार में मांग एवं जलवायु के अनुसार ही करें।
5-किसान भाइयों को बीजों का चुनाव करते समय बीज के आकार पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
आलू लगाने से 15 से 30 दिन पहले उसे बोरे से निकाल कर हवादार कमरे के फर्श पर फैला दें जहाँ धुँधली रोशनी आती हो। ऐसा करने से बीज का अंकुरण जल्दी होता है और पौधे के ताने भी अच्छे निकलते हैं। बुवाई करने से पहले बीज को एक ग्राम कॉर्बेंडाजिन या मैंकोजेब या कार्बोक्सिन दो ग्राम प्रति लीटर की पानी में घोल बना कर बीज को उपचारित करें।
उपचारित बीज की 24 घंटे अंदर बुवाई अवश्य कर दें।
आलू की फसल के लिए 25 से 30 क्विंटल बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। जिससे आप 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयरआलू का उत्पादन कर सकते हैं।
आलू की बुवाई कब और कैसे करें?
खेत में उर्वरकों का इस्तेमाल करने के बाद ऊपरी सतह को कुदाल से खोद कर उस में बीज डालना चाहिए बीज के पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए। जबकि पौधों से पौधों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए। और उसके ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें।
फसल की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
आलू की फसल वृद्धि एवं विकास तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल की सिंचाई बीज बोनें के 15-20 दिन के अंदर सिंचाई अवश्य करें भूमि में नमी 15-30 प्रतिशत तक कम हो जाने पर सिंचाई करनी चाहिए। खरपतवार को नष्ट करने के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक है।
रोग
पिछेता सुलझा
रोकथाम-बीमारी की रोकथाम की लिए 0.20 प्रतिशत मैंकोजेब दवा के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
अगेता झुलसा
रोकथाम-बीमारी की रोकथाम के लिए 0.3 प्रतिशत कॉपर आक्सीक्लोराइड फफूँदनाशक के घोल का प्रयोग किया जाये।
आलू की पत्ती मुड़ने वाला रोग
रोकथाम-फास्फोमिडान का 0.04 प्रतिशत घोल मिथाइलऑक्सीडिमीटान अथवा डाइमिथोएट का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर 1-2 छिड़काव करें।
दीमक
रोकथाम-डाइकोफॉल 18.5 ईसी. या क्यूनालफास 25 ई.सी. की 2 लीटर मात्रा प्रति है0 की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें
आलू की खुदाई
आलू की खुदाई फसल की अवधि पूर्ण होने पर ही करें। फसल को तैयार होने में 100-130दिन लग जाते हैं
बाजार भाव एवं आवश्यकता को देखते हुए रोपाई के 60-70 दिन बाद आलू का खुदाई कर सकते हैं। आलू की खुदाई करने के बाद इसके लिए कच्चे हवादार मकानों, छायादार स्थानों में आलू को रख सकते हैं
Q.1आलू की बुवाई कब से कब तक की जाती है?
Ans.अगेती किस्मों की बुवाई 15 सितम्बर के आस पास की जाती है, तथा मुख्य फसल की बुवाई के लिए 15-25 अक्टूबर का समय उचित रहता है
Q.2आलू में पहली सिंचाई कब करें?
Ans.फसल की सिंचाई बीज बोनें के 15-20 दिन के अंदर सिंचाई करें
Q.3 आलू कितने दिन में तैयार होते हैं?
Ans.आलू की फसल 100 से 130 दिन में तैयार हो जाती है
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