गन्ने की फसल के रोगों से बचाव और उपचार
गन्ने की फसल को कई प्रकार के रोगों और कीटों का प्रकोप होता है। इनसे बचाव के लिए समय-समय पर आवश्यक उपाय करना आवश्यक होता है। इस ब्लॉग में गन्ने के प्रमुख रोगों की पहचान और उनका उपचार बताया गया है।
प्रमुख कीट/रोग एवं पहचान
1- दीमक
बोये गये गन्ने के दोनो सिरों से घुस कर अन्दर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियाॅ पहले सूखती है तथा बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। ऐसे पौधों से दुर्गन्ध नही आती तथा पौधा आसानी से खिचने पर मिट्टी से उखड आता है।
पहचान
रोकथाम
· बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। · खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। · फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। · नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है।
· यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· कूड़ों में फेनवलरेट 0.4 प्रतिशतधूल 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए। · खड़ी फसल में प्रकोप की स्थित में निम्नलिखित कीटनाशकोंमें से किसी एक का सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
· इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशतई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
2- सफेद गिडार
वयस्क(गुबरैले) कीट मानसून की पहली वर्षा के बाद से पत्तियाँ को खाकर क्षति पहुंचाते है। कीट के गिडार सफेद मटमैले रंग की होते है जो पौधे की जड़ को खाकर क्षति पहुंचाते है। फलस्वरूप गन्ने का थान जड़ से सूखकर गिर जाता है।
पहचान
रोकथाम
· खेत की गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए। · बुवाई समय से तथा पौधों की वांछित दूरी बनाये रखी जानी चाहिए। · भूमिशोधनब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।
· खड़ी फसल में कीट की रोकथाम हेतु मेटाराइजियम एनिसोप्ली 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करना चाहिए जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग वयस्क कीट के नियंत्रण हेतु करना चाहिए।
· क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए । · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 25-30 किग्रा0 प्रति हे0 अथवा
· फेनवलरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए।
3- जड़ बेधक (रूट बोरर)
इस कीट की सूड़ी का प्रकोप छोटे बड़े दोनों ही पौधोंपर पाया जाता है। सूड़ी जमीन से लगे हुए गन्ने के भाग में छिद्र बनाकर घुस जाती है तथा मृतसार (डेड हार्ट) बनाती है इन मृतसारों से कोई दुर्गन्ध नहीं निकलती है तथा इसे आसानी से निकाला नही जा सकता है।
पहचान
रोकथाम
· कीट के अण्ड समूहों को इकट्ठा करके तथा प्रभावित तनों को जमीन से काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
· तलहटी वाले खेतों में पेडी की फसल नहीं लेनी चाहिए।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
· इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा · क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 अथवा
· फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 किग्रा0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बढ़वार की अवस्था ( कीट )
(मार्च से जून)
1-अंकुर बेधक
उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में अंकुरण से चार माह तक इसका प्रकोप रहता है। इसके लारवा वृद्धि बिन्दुओं को बेधकर मृत केन्द्र बनाते है जिसमें से सिरके जैसी बदबू आती है।
पहचान
रोकथाम
· अंकुर बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्नों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। · एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा
· मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा0 मात्रा प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा · फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जी0आर0 के 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से अथवा
· फोरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
2- चोटी बेधक (टाप सूट बोरर)
(मार्च से सितम्बर)
इसका प्रकोप गन्ने की फसल में बृद्धि की सभी अवस्थाओं में होता है प्रभावित गन्ने में पत्तियाँ सूखकर डेड हार्ट बना देती है तथा गन्ने की मघ्य सिरा में एक लाल धारी सी पड़ जाती है। विकसित गन्ने में झाड़ीनुमा सिरा (बन्ची टाप) बन जाती है।
पहचान
रोकथाम
· चोटी बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्ने को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
· मार्च से जुलाई तक 15 दिन के अन्तराल पर ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए
· फोरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
3- काला चिटका(ब्लैक बग) (अप्रैल से जून तक)
यह कीट गन्ने की पेडी पर अधिक सक्रिय रहता है तथा पत्तियाँ का रस चूसता है जिससे फसल दूर से पीली दिखाई देती है।
पहचान
रोकथाम
· वर्टिसिलियम लैकानी 1.15 प्रतिशत डब्लू0पी0 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल छिड़काव करना चाहिए।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी01.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए
· क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए ।
1- कडुआ रोग (चाबुक कडुआ) (अप्रैल से मई तक)
रोग ग्रस्त गन्ने की पत्तियाँ पतली, नुकीली तथा पोरिया लम्बी हो जाती है। प्रभावित गन्नों में छोटे या लम्बे काले कोडे निकल आते है जिन पर कवक के असंख्य वीजाणु स्थित होते है। इस रोग का प्रभाव पेडी गन्ने में अत्यधिक होता है।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए। · बोने के लिए बीज गन्ने का चयन स्वस्थ एवं रोग रहित खेतों से करना चाहिए ताकि अगली फसल को रोग मुक्त रखा जा सके। · रोगी थान का समूल उखाड कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्वस्थ गन्नों में दुबारा संक्रमण न हो सके। · प्रभावित खेत में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना नही बोना चाहिए। · समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में फसल में पानी का जमाव न हो।
· रोग से प्रभावित खेत में कटाई पश्चात उसमें पत्तियाँ एवं ठूठे को पूरी तरह जलाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
रसायनिक नियंत्रण
· बोने से पूर्व गन्ने के 50 कुन्तल बीज सेट को एम0ई0एम0सी0 6 प्रतिशत830 ग्राम प्रति हे0 प्रति की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए।
बढ़वार की अवस्था (लेटर स्टेज)
(जुलाई से अक्टूबर तक)
1-तना बेधक (स्टेम बोरर)
कीट का प्रकोप वर्षा काल के बाद जल भराव की स्थित में अधिक पाया जाता है। यह कीट तनों में छेद करके इसके अन्दर प्रवेष कर जाता है तथा पोरी के अन्दर का गूदा खा जाता है जिसके कारण उपज में कमी आ जाती है।
पहचान
रोकथाम
· गन्ने की सूखी पत्तियाँ को काट कर अलग कर देना चाहिए।
· एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल प्रयोग करना चाहिए
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी01.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए
· फोरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
2-गुरूदासपुर बेधक
कीट का प्रकोप जुलाई से अक्टूबर तक रहता है। सूडी ऊपर से दूसरी या तीसरी पोरी में प्रवेष कर अन्दर से गन्ने को खोखला कर देती है।
पहचान
रोकथाम
· गन्ने की सूखी पत्तियाँ को काट कर अलग कर देना चाहिए।
· एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल प्रयोग करना चाहिए ।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी01.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए
· फोरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
3-पायरिला (जुलाई से सितम्बर तक)
कीट का सिरा लम्बा व चोंचनुमा होता है। इसके शिशु तथा वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुॅचाते है।
पहचान
रोकथाम
· अण्ड समूहों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
· फसल वातावरण में पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में कीट की स्वतः रोकथाम हो जाती है।
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाषको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· क्यूनालफास 25 प्रतिशतई0सी0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · डाइक्लोरोवास 76 प्रतिशतई0सी0 375 मिली0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए
· क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशतई0सी01.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए
4-पोरी बेधक (इन्टर नोड बोरर) (जुलाई से अक्टूबर तक)
इसके लारवा गन्ने के कोमल व मुलायम भाग को क्षतिग्रस्त कर पोरी में बेधक करते हुए गन्ने के ऊपरी भाग में पहुंच जाते है।
पहचान
रोकथाम
· गन्ने की सूखी पत्तियाँ को काट कर अलग कर देना चाहिए। · नाइट्रोजन का अधिक उपयोग नही करना चाहिए। · खेत में समुचित जल प्रबन्ध करना चाहिए।
· एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल में प्रयोग करना चाहिए
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
· मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी01.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए · कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए
· फोरेट 10 प्रतिशत सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
1-लाल सड़न ( काना रोग) (जुलाई से फसल के अन्त तक)
ऊपर से तीसरी तथा चैथी पत्ती सूखने लगती है साथ ही पत्ती के बीच की मोटी नस में लाल या भूरे रंग के धब्बे पडने लगते है। गन्ने को बीच की चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई पड़ता है। जिसमें से सिरके जैसी गंध आती हैं। गन्ने की पिथ में सफेद अथवा भूरी रंग की फफूॅदी भी विकसित हो जाती हैं।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। · स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशतआर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। · पौधशालाओं के लिए खेत के चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके। · ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए
· स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए ।
2-अगोले की सड़न (जुलाई से सितम्बर तक)
ऊपर की नयी पत्तियाॅ प्रारम्भ में हल्की पीली अथवा सफेद पड़ जाती है जो बाद में सड़ कर नीचे गिर जाती है। यह रोग वर्षाकाल में अधिक लगता है तथा गन्ने की बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। · स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशतआर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। · पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके। · ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 अध सडे गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए
· स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
3-उकठा रोग (अक्टूबर से फसल केे अन्त तक)
प्रभावित थान के गन्नों की पोरियों का रंग हल्का पीला हो जाता है। गन्ने का गूदा सूख जाता है तथा रंग भूरा हो जाता है।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। · स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशतआर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। · पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके। · ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए
· स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
4-पत्ती की लाल धारी (जून से सितम्बर तक)
गन्ने की पत्तियाँ पर लाल रंग की धारियाॅ निचली सतह पर पड़ जाती है जिसके अत्यधिक प्रकोप की दषा में पूरी पत्ती लाल हो जाती है। पत्तियाँ का क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है तथा बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। · स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशतआर्द्रता पर) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। · पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके। · ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए
· स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
5-विवर्ण रोग ( जून से फसल के अन्त तक)
वर्षाकाल में इस रोग के लक्षण अधिक स्पष्ट होते है। किल्लों की पत्तियाॅ दूधिया सफेद रंग की हो जाती है जो बाद में झाड़ीनुमा थान बना देती है।
पहचान
रोकथाम
· रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गांठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए। · स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशतआर्द्रता पर) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो। · पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके। · ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए
· स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
सौजन्य से :-upagripardarshi.gov.in
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