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Krishna

Chilli Farming:मिर्च की खेती कब और कैसे करें?

मिर्च की खेती: खुद की मिर्च उत्पादन में कौन-कौन सी चीजें ध्यान में रखें?"

भारत में मिर्च एक महत्वपूर्ण और लाभकारी फसल है जो गर्मीयों में अच्छी उत्थान क्षमता रखती है। इसका सही रूप से उत्पादन करने से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है, लेकिन इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए सही जानकारी और कौशल की आवश्यकता है।


इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको मिर्च की खेती की प्रारंभिक जानकारी प्रदान करेंगे - कब और कैसे इसे उत्पादित करना चाहिए। हम सही बुआई समय, उपयुक्त उर्वरक, प्रबंधन तकनीकियों, और फसल की देखभाल के लिए महत्वपूर्ण नुस्खे शामिल करेंगे।


मिर्च की खेती मुख्यतः नगदी फसल के रूप में की जाती है। इसकी खेती से लगभग 85-90 हजार रुपए/हेक्टेयर आमदनी होती है। मिर्च की फसल की विविधता, मौसम और जलवायु, उर्वरता और जल प्रबंधन के आधार पर लगभग 160-180 दिन है ।


मिर्च की वृद्धि और उपयोग

मिर्च की वृद्धि दो मुख्य चरणों में होती है:

वनस्पति चरण: इस चरण में, पौधे की जड़ें, तना और पत्तियां विकसित होती हैं। यह चरण आमतौर पर 75-85 दिनों तक रहता है।

प्रजनन चरण: इस चरण में, पौधे फूल और फल पैदा करते हैं। यह चरण आमतौर पर 75-95 दिनों तक रहता है।

मिर्च हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसमें विटामिन ए, सी, फास्फोरस, कैल्शियम और कई अन्य खनिज होते हैं।


भारत में हरी मिर्च का उत्पादन आंध्र प्रदेश,तामिलनाडु,कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में किया जाता है. हरी मिर्च में कैप्साइसिन रसायन होता है. जिसकी वजह से इसमें तीखापन रहता है.

जलवायु


मिर्च की खेती के लिए 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना सही रहता है. इसकी खेती के लिए गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त है क्योंकि पाला फसल को नुकसान पहुंचाता है. अच्छी वृद्धि तथा उपज के लिए उष्णीय और उप उष्णीय जलवायु की आवश्यकता होती है। प्रतिकूल तापमान तथा जल की कमी से कलियाँ, पुष्प एवं फल गिर जाते हैं। हरी मिर्च की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त रहती है. वैसे इसकी खेती हर तरह की जलवायु में हो सकती है. तो वहीं इसके लिए ज्यादा ठंड व गर्मी दोनों ही हानिकारक होते है. इसके पौधे को करीब 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. इसके अलावा हरी मिर्च की फसल पर पाले का प्रकोप अधिक होता है।




मिर्च की उन्नत किस्में

मिर्च की कुछ प्रचलित उन्नत और संकर किस्मे इस प्रकार है,

मिर्च की उन्नत किस्में:

मिर्च की कई प्रचलित उन्नत और संकर किस्में हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:


मसाले हेतु:

  • पूसा ज्वाला

  • पन्त सी-1

  • एन पी-46 ए

  • आर्को लोहित

  • पंजाब लाल

  • आंध्र ज्योति

  • जहवार मिर्च-283

  • जहवार मिर्च-148

  • कल्याणपुर चमन

  • भाग्य लक्ष्मी


आचार हेतु:

  • केलिफोर्निया वंडर

  • चायनीज जायंट

  • येलो वंडर

  • हाइब्रिड भारत

  • अर्का मोहिनी

  • अर्का गौरव

  • अर्का मेघना

  • अर्का बसंत

  • सिटी

  • काशी अर्ली

  • तेजस्विनी

  • आर्का हरित

  • पूसा सदाबहार (एल जी-1)

अन्य किस्में:

  • काशी अनमोल

  • काशी विश्वनाथ

  • जवाहर मिर्च-218

  • अर्का सुफल

  • एचपीएच-1900, 2680

  • यूएस-611, 720

  • काशी अर्ली

  • काशी सुर्ख या काशी हरित

इन किस्मों के अलावा भी मिर्च की कई अन्य किस्में हैं, जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी में उगाई जा सकती हैं। अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उचित किस्म का चयन करना महत्वपूर्ण है।


यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जिन पर आपको मिर्च की किस्म का चयन करते समय विचार करना चाहिए:

  • जलवायु: कुछ किस्में ठंडी जलवायु में अच्छी तरह से उगती हैं, जबकि अन्य गर्म जलवायु में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

  • मिट्टी: कुछ किस्में भारी मिट्टी में अच्छी तरह से उगती हैं, जबकि अन्य रेतीली मिट्टी में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

  • रोग प्रतिरोध: कुछ किस्में रोगों के प्रतिरोधी होती हैं, जबकि अन्य रोगों के प्रति संवेदनशील होती हैं।

  • उपज: कुछ किस्में उच्च उपज देती हैं, जबकि अन्य कम उपज देती हैं।

  • फल का आकार और रंग: फल का आकार और रंग आपके बाजार की मांग के अनुसार होना चाहिए।


मिर्च की नर्सरी तैयार करना

मिर्च की नर्सरी तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजों की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधशाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बेंडाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियां बनाकर बीज बुवाई करें।

जरुरत के हिसाब से पौधशाला में फव्वारें से पानी देते रहना चाहिए.गर्मियों में दोपहर के बाद एक दिन के अंतर पर पानी छिड़ देना चाहिए, क्योंकि गर्मी के मौसम में एग्रो नेट का प्रयोग करने से भी भूमि में नमी जल्दी उठ जाती हैं.


भूमि का चयन


मिर्च की खेती को अच्छे जल-निकास वाली प्रायः सभी प्रकार की भूमि में पैदा किया जा सकता है| फिर भी जीवांशयुक्त दोमट या बलुई मिटटी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो सबसे उपुयक्त मानी जाती है| लवण और क्षार युक्त भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है| लवण वाली भूमि इसके अंकुरण और प्रारंभिक विकास को प्रभावित करती हैं| मिर्च के लिए मिटटी का पी एच मान 6.5 से 7.5 सर्वोतम है, लेकिन इसको 8 पी एच मान (वर्टीसोल्स) वाली मिटटी में भी उगाया जा सकता है|


खेत की तैयारी


मिर्च की खेती को तैयारी 4-5 गहरी जुताई और हर बार जुताई के बाद पट्टा देकर खेत को अच्छी तरह समतल कर लें। इसी समय अच्छी तरह सड़े गोबर की खाद 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से डाले। खाद यदि अच्छी तरह सड़ी नही होगा तो दीमक लगने का भय रहता है



पोषक तत्व प्रबंधन


मिर्च की फसल में उर्वकों का प्रयोग मिटटी परीक्षण के आधार पर करें| सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 25 -30 टन गोबर की पूर्णतः सड़ी हुयी खाद खेत की तैयारी के समय मिलायें| नाइट्रोजन 120 से 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम तथा पोटाष 80 किलोग्राम का प्रयोग करें|


पौध रोपाई

नर्सरी में बुवाई के 4 से 6 सप्ताह बाद पौधे रोपने योग्य हो जाती है| गर्मी की फसल में कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें|

खरीफ की फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 से 45 सेन्टीमीटर रखें रोपाईं सायं के समय करे और रोपाई के बाद तुरन्त सिंचाई करें|

सिचाई व निराई गुड़ाई

पहली सिंचाई पौध प्रतिरोपण के बाद कर देनी चाहिए. अगर गर्मियों का मौसम है, तो हर 5- 7 और सर्दी का मौसम है, तो करीब 10 से 12 दिनों में फसल को सींचना चाहिए. फसल में फूल व फल बनते समय सिंचाई करना जरुरी है. अगर इस वक्त सिंचाई नहीं की जाए, तो फल व फूल छोटी अवस्था में गिर जाते हैं. ध्यान रहे कि मिर्च की फसल में पानी का जमाव भी न हो


रोग एवं रोकथाम

इसकी खेती मे लगने वाले रोंगों मे मुख्य रूप से जड़ गलन( आद्रगलन), पती गलन, स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम, प्रण कुंचन (पत्तिया सुखना ) जैसे रोंग है, जो मिर्ची की खेती को प्रभावित करते है


झुलस रोग : यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है और ज्यादातर कम निकास वाली ज़मीनों में और सही ढंग से खेती ना करने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।यह फाइटोफथोरा कैपसीसी नाम की फंगस के कारण होता है। फसल को बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम प्रति 150 पानी की स्प्रे करें।


पत्तों पर सफेद धब्बे : यह बीमारी पौधे को अपने खाने के तौर पर प्रयोग करती है, जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह बीमारी विशेष तौर पर फलों के गुच्छे बनने पर या उससे पहले, पुराने पत्तों पर हमला करती है इस बीमारी से पत्तों के नीचे की ओर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह किसी भी समय फसल पर हमला कर सकती है। इसको फैलने से रोकने लिए पानी में घुलनशील सलफर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 स्प्रे 10 दिनों के अंतर पर करें।


पत्ती मरोड़ रोग: इस रोग को कुकड़ा और चुरड़ा -मुरड़ा रोग के नाम से भी जाना जाता है। पत्ती मरोड़ रोग थ्रिप्स और माइट जैसे कीटों के कारण होता है।इस रोग के फैलने का मुख्य कारण हैं सफेद मक्खियां, जो इस रोग को एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलाने का काम करती हैं। इस रोग के बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है। जिसके फलस्वरूप मिर्च की पैदावार में कमी आ जाती है।


सफेद मक्खी : यह पौधों का रस चूसती है और उन्हें कमज़ोर कर देती है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे पत्तों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है। यह पत्ता मरोड़ रोग को फैलाने में मदद करते हैं

सफेद मक्खियों पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 5 मिलीलीटर नीम का तेल मिला कर छिड़काव करें।

थ्रिप्स के प्रकोप को कम करने के लिए प्रति 5 लीटर पानी में 30 मिलीलीटर ट्राइजोफॉस 40 ई.सी मिला कर छिड़काव करें।यदि मिर्च के पौधों पर थ्रिप्स और माइट दोनों का प्रकोप हुआ है तो कीटनाशक और माइटीसाइड दोनों का छिड़काव करना चाहिए


कीट से प्रभावित पौधों को एकत्र करके नष्ट कर दें। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। प्रोपाइगाठ 57 ईसी की 3.5 एमएल एक लीटर पानी में घोल बनाएं अथवा घुलनशील सल्फर दो ग्राम एक लीटर पानी में घोल बना कर 15 दिनों के अंतराल में दो-तीन छिड़काव करें।


फल तोड़ाई

हरी मिर्च के लिए तोड़ाई फल लगने के लगभग 15 से 20 दिनों बाद कर सकते हैं. पहली और दूसरी तोड़ाई में लगभग 12 से 15 दिनों का अंतर रख सकते है. फल की तोड़ाई अच्छी तरह से तैयार होने पर ही करनी चाहिए

पैदावार

अगर इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए, तो इसकी पैदावार लगभग 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी लाल मिर्च प्राप्त की जा सकती है. पैकिंग के लिए मिर्चें को पक्की और लाल रंग की होने पर तोड़ें। सुखाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिर्चों की पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करें।


Q.1 हरी मिर्च कब बोई जाती है?

Ans पहली फसल के लिए होली के आसपास खेतों को तैयार कर मिर्च की बुआई की जाती है। एक-डेढ़ माह बाद मिर्ची लगनी शुरू हो जाती है। इसके अलावा जून माह में बुआई के बाद जुलाई में मिर्ची उतरनी शुरू हो जाती है।


Q.2 मिर्ची की अच्छी वैरायटी कौन सी है?

Ans पूसा ज्वाला


Q.3 भारत की सबसे बड़ी मिर्च मंडी कहाँ है?

Ans देश की पहली और सबसे बड़ी मिर्च मंडी आंध्रप्रदेश के गुंटूर में है. यहां सबसे ज्यादा मिर्च की खरीद-बिक्री होती है.


Q.4 भारत में मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

Ans आंध्र प्रदेश


Q.5 मिर्च मे पाये जाने वाले पोषक तत्व कौन से हैं?

Ans विटामिन ‘ए’ और ‘सी’, फास्फोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं|

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