हमारी जनसँख्या एक अरब पहुँचने में कई सौ हज़ार साल लगे.. और करीब 200 साल में हमारी जनसँख्या 7.5 अरब के पार पहुँच गई. कई scientists की माने तो हमारे पास सिर्फ 2 अरब लोगों के survival के लिए resources available हैं. यानी हमें अपने resources और food production को सावधानी से use करने की जरूरत है ताकि हम अतिरिक्त 5.5 अरब लोगों की आवश्यकताएं पूरी कर सकें.!
लोगों की खान-पान की जरूरतों को पूरा करने के लिए farming के नए-नए तरीके अपनाए गए..ज्यादा उपज के लिए fertilizers और pesticides के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया. वहीँ दूध और अन्डो की मांग बढ़ने से पालतू जानवरों को ज्यादा घने shades में रखने की शुरुआत की गई. और जरूरत पड़ने पे उन्हें मांस के लिए बाजार पहुँचाया जाने लगा.!
“ आज के समय में organic farming दुनिया भर की मात्र 1% agricultue land में की जा रही है. ये sustainable farming method तो है ही साथ ही conventional farming की अपेक्षा ज्यादा environment friendly है.! climate change से निपटने के लिए farming के इस method का इस्तेमाल किया जा रहा है. .”
क्या होती है जैविक खेती?
जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् १९९० के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफ़ी बढ़ा है।
उर्वरकों और रासायनिक कीटनाशकों के बिना की जाने वाली खेती, जैविक खेती कहलाती है. जैविक खेती में जीवांश के इस्तेमाल से फसलों तक पोषण पहुंचाया जाता है.
जैविक खेती में रासायनिक, खाद, जहरीले कीटनाशकों की जगह पर जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. जैविक खेती से जमीन की उर्वरता हमेशा अच्छी बनी रहती है, जमीन में मौजूद पोषक तत्व खत्म नहीं होते और मिट्टी हमेशा पोषण से भरपूर रहती है. उवर्रकों के ज्यादा इस्तेमाल से जमीन ऊसर हो सकती है, जहां अगर रसायन न डाले जाएं तो फसल उग नहीं सकती है
जैविक खेती में कैसे मिलता है फसलों को पोषण?
गोबर, कचरा और बारीक छनी हुई मिटटी के इस्तेमाल से नाडेप तैयार की जाती है. नाडेप के कई प्रकार होते हैं, जिन्हें जैविक खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पिट कम्पोस्ट से भी फसलों को पोषण दिया जाता है. वानस्पतिक पदार्थ कचरा, डंठल, टहनियां, पत्तियां, बायोगैस स्लरी, वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद फसलों को पर्याप्त पोषण देते हैं. प्राकृतिक खाद बनाने की कई विधियां होती हैं, जिनके बारे में सरकार समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों के जरिए जानकारी देती है.
कैसे की जाती है जैविक खेती?
जैविक खेती के लिए रसायन और उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं होता है. कुछ फसलों को नर्सरी में तैयार किया जाता है, कुछ फसलों की सीधी बुवाई होती है. किसान अपनी फसलों के पोषण के लिए गो-मूत्र, गोबर, नीम उत्पाद, कंपोस्ट, इपोमिया की पत्ती का घोल, मट्ठा, मिर्च, लहसुन, राख, केंचुआ और सनई-ढैंचा जैसे प्राकृतिक रूप से मिलने वाले तत्वों का इस्तेमाल करते हैं.
किसान इन्हीं उत्पादों से कीटनाशक भी तैयार करते हैं. मट्ठा, नीम, मिर्स, लहसुन के पेस्ट का छिड़काव फसलों पर भी किया जाता है. जैविक खेती के लिए किसानों को सही ट्रेनिंग की जरूरत होती है, जिसकी जानकारी किसान, अपने जिले या तहसील के कृषि विभाग से ले सकते हैं. सरकार द्वारा चलाए गए स्थानीय कार्यक्रमों, दूरदर्शन, रेडियो और और दूसरे कृषि चैनलों पर जैविक खेती के बारे में देश के मशहूर कृषि विशेषज्ञों से जानकारी हासिल की जा सकती है.
ऑर्गेनिक खेती की क्या हैं चुनौतियां?
उवर्रक और आधुनिक खेती ने फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया है. ऑर्गेनिक खेती के शुरुआती 3 से 4 साल किसानों के लिए फायदेमंद नहीं होते हैं. अगर बहुत अच्छी फसल है तो सामान्य से 30 फीसदी कम फसल, अगर अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं तो 50 फीसदी तक कम फसल पैदा होती है.
नितिद ड्यूंडी का कहना है कि शुरुआती दौर में फसलों के उत्पादन में आई इस कमी को किसान समझ नहीं पाते हैं. सही बाजार और ग्राहक न मिलने की वजह से उन्हें घाटा होता है. उन्हें देखकर दूसरे किसान भी यह साहस नहीं कर पाते हैं. ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसान 3 से 4 साल बाद फायदे का सौदा करने लगते हैं.
ऐसा नहीं है कि यह बोझिल और घाटे की प्रक्रिया है. जिन जमीनों पर इनऑर्गेनिक फसल या पारंपरिक खेती की जाती है, वहां की उर्वरता काफी हद तक यूरिया, फास्फोरस और दूसरे कृषि उवर्रकों पर निर्भर रहती है. जैविक खेती या ऑर्गेनिक खेती के लिए जमीनें पूरी तरह 3 से 4 साल में तैयार होती हैं. एक बार जमीन तैयार हो जाए तो ऐसी जमीनों पर खेती करना फाएदे का सौदा होता है.
जैविक खेती के लिए क्या कर रही है सरकार?
केंद्र सरकार का जोर है कि फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (FPO) को बढ़ाया जाए. एफपीओ के जरिए किसानों को सही बाजार मिल जाता है. उनकी खुद की एक कंपनी होती है, जिसमें वे मालिक की भूमिका में होते हैं. छोटे-छोटे किसान मिलकर बड़े उत्पाद बेच सकते हैं.
किसान उत्पादक संगठन (FPO) बाजार में उत्पादों की पहुंच आसान करने से लेकर उनकी सप्लाई तक, किसानों के साथ खड़े रहते हैं. किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम मिलता है. FPO के जरिए किसान को बीज, खाद, मशीनरी, मार्केट लिंकेज, ट्रेनिंग, नेटवर्किंग, वित्तीय मदद भी मिलती है. सरकार ने देशभर में हजारों किसान उत्पादक संगठन की स्थापना कर रही है. इसकी वजह से किसानों को सीधे लाभ हो रहा है. छोटे-छोटे किसान मिलकर एक FPO बना लेते हैं और अपनी फसलें भेजते हैं.
ऑर्गेनिक खेती करने से डरते क्यों हैं किसान? ऑर्गेनिक खेती की उपज, पारंपरिक खेती की तुलना में 50 से लेकर 30 फीसदी तक कम हो सकती है. खेतों को रासायनिक खाद की आदत होती है. अचानक से ऑर्गेनिक फॉर्मिंग पर शिफ्ट होने की वजह से उत्पादकता बुरी तरह कम हो जाती है. किसान अपनी फसलों पर सालभर की पूंजी लगाता है. उसके पास इतनी पूंजी नहीं होती है कि 2 से 3 साल तक बिना मुनाफे की खेती कर सके. ऐसे में किसान अनऑर्गेनिक से ऑर्गेनिक खेती की प्रक्रिया में आर्थिक तौर पर जूझता है.
हर किसान को सही बाजार मिल जाए यह जरूरी नहीं है. उस क्षेत्र में ऑर्गेनिक उत्पाद खरीदने वाले लोग कितने हैं, इस पर भी किसान का मुनाफा टिका होता है. आम आदमी के लिए दोनों फसलें एक सी होती हैं लेकिन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स खरीदने वाली क्लास अलग है. बाजार भी अधिकांश शहरी ही है. ऐसे में हर किसान को सही प्लेटफॉर्म मिल पाए, यह दुर्लभ है. किसान हमेशा इसी जोखिम में रहता है. इसके अलावा मौसम भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती है. कीटनाशकों का इस्तेमाल ऑर्गेनिक खेती में नहीं होता है, ऐसे में फसलों के लिए कीड़े भी किसी चुनौती से कम नहीं होते हैं. फसलों की सुरक्षा भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती है.
जैविक खेती का कितना बड़ा है कारोबार? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब एक साल पहले कहा था कि देश में जैविक उत्पादों का बाजार 11000 करोड़ तक पहुंच गया है. निर्यात 6 साल पहले के 2,000 करोड़ रुपये से बढ़कर अब 7000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है. लोग पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपना रहे हैं, जिसकी वजह से जैविक उत्पादों की मांग बढ़ी है. किसानों को जैविक खेती पर जोर देना चाहिए. क्यों खाद-उर्वरकों पर निर्भर हो गए किसान?
भारत में साल 1965 के बाद शुरू हुई हरित क्रांति ने किसानों की मानसिकता ऐसी बदली कि किसान अच्छी उपज के लिए खेतो में अंधाधुंध उवर्करों का इस्तेमाल करने लगे. भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एमएस स्वामीनाथन ने 1966-67 के बाद देश की तकदीर बदलकर रख दी थी. खेते में उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल होने लगा था. ऐसे कृषि उत्पादों की वजह से अब लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. यही वजह है कि जैविक खेती का चलन बढ़ गया है
भारत मे जैविक खेती का महत्व (Importance of organic farming in India)
सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। पिछले कई महीनों से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और कृषि वैज्ञानिक किसानों की आय बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में जैविक खेती की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
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